laxminarayan (23)

 

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अध्याय तैंतीस – कपिल के कार्यकलाप (3.33)

1 श्री मैत्रेय ने कहा : इस प्रकार भगवान कपिल की माता एवं कर्दम मुनि की पत्नी देवहूति भक्तियोग तथा दिव्य ज्ञान सम्बन्धी समस्त अविद्या से मुक्त हो गई। उन्होंने उन भगवान को नमस्कार किया जो मुक्ति की पृष्ठभूमि सांख्य दर्शन के प्रतिपादक हैं और तब निम्नलिखित स्तुति द्वारा उन्हें प्रसन्न किया ।

2 देवहूति ने कहा: ब्रह्माजी अजन्मा कहलाते हैं, क्योंकि वे आपके उदर से निकलते हुए कमल-पुष्प से जन्म लेते हैं और आप ब्रह्माण्ड के तल पर समुद्र में शयन करते रहते हैं। लेकिन

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कृपया मेरा विनम्र प्रणाम स्वीकार करें !  

(Please accept my humble obeisances)

श्रील प्रभुपाद की जय हो !   

(All Glories to Sril Prabhupada)

श्रीमदभागवत न केवल प्रत्येक वस्तु के परम स्रोत को जानने के लिए दिव्य विज्ञान है अपितु ईश्वर से अपने सम्बन्ध को जानने और इस पूर्ण ज्ञान के आधार पर मानव समाज की पूर्णता के प्रति अपने कर्तव्य को पहचानने का दिव्य विज्ञान है।   श्रीमदभागवत का शुभारम्भ परम स्रोत की परिभाषा से होता है। यह श्रील व्यासदेव द्वारा रचे वेदान्त-सूत्र पर उन्हीं का प्रामाणिक भाष्य है, जो क्रम

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ॐ श्री गुरु गौरांग जयतः

अध्याय अठारह उपसंहार—संन्यास की सिद्धि 

https://youtu.be/VQSon4RQDcM

1 अर्जुन ने कहा— हे महाबाहु! मैं त्याग का उद्देश्य जानने का इच्छुक हूँ और हे केशिनिषूदन, हे हृषिकेश! मैं त्यागमय जीवन (संन्यास आश्रम) का भी उद्देश्य जानना चाहता हूँ।

2 श्रीभगवान ने कहा— भौतिक इच्छा पर आधारित कर्मों के परित्याग को विद्वान लोग संन्यास कहते हैं और समस्त कर्मों के फल-त्याग को बुद्धिमान लोग त्याग कहते हैं।

3 कुछ विद्वान घोषित करते हैं कि समस्त प्रकार के सकाम कर्मों को दोषपूर्ण समझ कर त्याग देना चा

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