हिन्दी भाषी संघ (229)

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अध्याय पैंतीस - कृष्ण के वनविहार के समय गोपियों द्वारा कृष्ण का गायन (10.35)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब भी कृष्ण वन को जाते थे गोपियों के मन उन्हीं के पीछे भाग जाते थे और इस तरह युवतियाँ उनकी लीलाओं का गान करते हुए खिन्नतापूर्वक अपने दिन बिताती थीं।

2-3 गोपियों ने कहा: जब मुकुन्द अपने होंठों पर रखी बाँसुरी के छेदों को अपनी सुकुमार अँगुलियों से बन्द करके उसे बजाते हैं, तो वे अपने बाएँ गाल को अपनी बाईं बाँह पर रखकर अपनी भौंहों को नचाने लगते हैं। उस समय आकाश में अपने पतियों अर्थात सिद्धों सम

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अध्याय चौतीस – नन्द महाराज की रक्षा तथा शंखचूड़ का वध (10.34)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: एक दिन भगवान शिव की पूजा हेतु यात्रा करने के उत्सुक ग्वाले बैलगाड़ियों द्वारा अम्बिका वन गये।

2 हे राजन, वहाँ पहुँचने के बाद उन्होंने सरस्वती नदी में स्नान किया और तब विविध पूजासामग्री से शक्तिशाली शिवजी तथा उनकी पत्नी देवी अम्बिका की भक्तिपूर्वक पूजा की।

3 ग्वालों ने ब्राह्मणों को गौवें, स्वर्ण, वस्त्र तथा शहद मिश्रित पकवान की भेंटें दान में दी। तत्पश्चात उन्होंने प्रार्थना की, “ हे प्रभु, हम पर आप प्रसन्

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अध्याय तैंतीस - रास नृत्य (10.33)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब गोपियों ने भगवान को अत्यन्त मनोहारी इन शब्दों में कहते सुना तो वे उनके विछोह से उत्पन्न अपना दुख भूल गई। उनके दिव्य अंगों का स्पर्श पाकर उन्हें लगा कि उनकी सारी इच्छाएँ पूर्ण हो गई।

2 तत्पश्चात भगवान गोविन्द ने वहीं यमुना के तट पर उन स्त्री-रत्न श्रद्धालु गोपियों के संग में रासनृत्य लीला प्रारम्भ की जिन्होंने प्रसन्नता के मारे अपनी बाँहों को एक दूसरे के साथ शृखंलाबद्ध कर दिया।

3 तब उल्लासपूर्ण रासनृत्य प्रारम्भ हुआ जिसमें गोपिय

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अध्याय बत्तीस - पुनः मिलाप (10.32)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन, इस तरह गाकर तथा अपने हृदय की बातों को विविध मोहक विधियों से प्रकट करके गोपियाँ जोर जोर से रोने लगीं। वे कृष्ण का दर्शन करने के लिए अत्यन्त लालायित थीं।

2 तब भगवान कृष्ण अपने मुखमण्डल पर हँसी धारण किए गोपियों के समक्ष प्रकट हो गये। माला तथा पीत वस्त्र पहने वे ऐसे लग रहे थे, जो सामान्य जनों के मन को मोहित करने वाले कामदेव के मन को भी मोहित कर सकते थे।

3 जब गोपियों ने देखा कि उनका परमप्रिय कृष्ण उनके पास लौट आया है, तो वे सह

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अध्याय इकतीस - गोपियों के विरह गीत (10.31)

1 गोपियों ने कहा: हे प्रियतम, व्रजभूमि में तुम्हारा जन्म होने से ही यह भूमि अत्यधिक महिमावान हो उठी है और इसीलिए इन्दिरा (लक्ष्मी) यहाँ सदैव निवास करती हैं। केवल तुम्हारे लिए ही हम तुम्हारी भक्त दासियाँ, अपना जीवन पाल रही हैं। हम तुम्हें सर्वत्र ढूँढती रही हैं अतः कृपा करके हमें अपना दर्शन दीजिये।

2 हे प्रेम के स्वामी, आपकी चितवन शरदकालीन जलाशय के भीतर सुन्दरतम सुनिर्मित कमल के कोश की सुन्दरता को मात देने वाली है। हे वरदाता, आप उन दासियों का वध कर रहे है

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अध्याय तीस - गोपियों द्वारा कृष्ण की खोज (10.30)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब भगवान कृष्ण इस तरह एकाएक विलुप्त हो गये तो गोपियाँ उन्हें न देख सकने के कारण अत्यन्त व्यथित हो उठीं जिस तरह हथिनियों का समूह अपने नर के बिछुड़ जाने पर खिन्न हो उठता है।

2 भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते ही गोपियों के हृदय उनकी चाल-ढाल तथा प्रेममयी मुसकान, उनकी कौतुकपूर्ण चितवन, मोहने वाली बातों तथा अपने साथ की जानेवाली अन्य लीलाओं से अभिभूत हो उठे। इस तरह रमा के स्वामी कृष्ण के विचारों में लीन वे गोपियाँ उनकी विविध

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अध्याय उन्तीस - रासनृत्य के लिए कृष्ण तथा गोपियों का मिलन (10.29)

1 श्रीबादरायणि ने कहा: श्रीकृष्ण समस्त ऐश्वर्यों से पूर्ण भगवान हैं फिर भी खिलते हुए चमेली के फूलों से महकती उन शरदकालीन रातों को देखकर उन्होंने अपने मन को प्रेम-आनन्द की ओर मोड़ा। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अपनी अन्तरंगा शक्ति का उपयोग किया।

2 तब चन्द्रमा अपनी लाल रंग की सुखदायी किरणों से पश्चिमी क्षितिज को रंजित करते हुए उदय हुआ और इस तरह उसने उदय होते देखने वालों की पीड़ा दूर कर दी। यह चन्द्रमा उस प्रिय पति के समान था

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अध्याय अट्ठाईस - कृष्ण द्वारा वरुणलोक से नन्द महाराज की रक्षा (10.28)

1 श्रीबादरायणि ने कहा: भगवान जनार्दन की पूजा करके तथा एकादशी के दिन व्रत रखकर नन्द महाराज ने द्वादशी के दिन स्नान करने के लिए कालिन्दी के जल में प्रवेश किया।

2 चूँकि नन्द महाराज ने इस बात की अवहेलना करके कि यह अशुभ समय था रात्रि के अंधकार में जल में प्रवेश किया था अतः वरुण का आसुरी सेवक उन्हें पकड़कर अपने स्वामी के पास ले आया।

3 हे राजन, नन्द महाराज को न देखकर ग्वाले जोर से चिल्ला उठे, “हे कृष्ण, हे राम,” भगवान कृष्ण ने उनकी चीख

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अध्याय सत्ताईस - इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति (10.27)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने तथा भयंकर वर्षा से व्रजवासियों की रक्षा करने के बाद गौवों की माता सुरभि गोलोक से कृष्ण का दर्शन करने आई। इनके साथ इन्द्र था।

2 भगवान का अपमान करने के कारण इन्द्र अत्यन्त लज्जित था। एकान्त स्थान में उनके पास जाकर इन्द्र उनके चरणों पर गिर पड़ा और सूर्य के समान तेज वाले मुकुट को भगवान के चरणकमलों पर रख दिया।

3 अब तक इन्द्र सर्वशक्तिमान कृष्ण की दिव्य शक्ति को सुन तथा देख चुका

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अध्याय छब्बीस  - अद्भुत कृष्ण (10.26)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब गोपों ने गोवर्धन पर्वत उठाने जैसे कृष्ण के कार्यों को देखा तो वे विस्मित हो गये। उनकी दिव्य शक्ति को न समझ पाने के कारण वे नन्द महाराज के पास गये और इस प्रकार बोले।

2 ग्वालों ने कहा: जब यह बालक ऐसे अद्भुत कार्य करता है, तो फिर किस तरह हम जैसे संसारी व्यक्तियों के बीच उसने जन्म लिया? ऐसा जन्म तो उसके लिए घृणित लगेगा।

3 यह सात वर्ष का बालक किस तरह विशाल गोवर्धन पर्वत को खेल खेल में एक हाथ से उसी तरह उठाये रह सकता है, जिस तरह

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अध्याय पच्चीस - कृष्ण द्वारा गोवर्धन - धारण (10.25)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, जब इन्द्र को पता चला कि उसका यज्ञ सम्पन्न नहीं हुआ तो वह नन्द महाराज तथा अन्य गोपजनों पर क्रुद्ध हो गया क्योंकि वे सब कृष्ण को अपना स्वामी मान रहे थे।

2 क्रुद्ध इन्द्र ने ब्रह्माण्ड का विनाश करने वाले बादलों के समूह को भेजा जो सांवर्तक कहलाते हैं। वह अपने को सर्वोच्च नियन्ता मानते हुए इस प्रकार बोला।

3 इन्द्र ने कहा: जरा देखो तो सही कि जंगल में वास करने वाले ये ग्वाले अपने वैभव से किस तरह इतने उन

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अध्याय चौबीस -- गोवर्धन-पूजा (10.24)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: उस स्थान पर अपने भाई बलदेव के साथ रहते हुए कृष्ण ने ग्वालों को इन्द्र-यज्ञ की जोर-शोर से तैयारी करते देखा।

2 परमात्मा होने से भगवान कृष्ण पहले से ही सारी स्थिति जानते थे फिर भी विनीत भाव से उन्होंने अपने पिता नन्द महाराज इत्यादि गुरुजनों से पूछा।

3 भगवान कृष्ण ने कहा: हे पिताश्री, कृपा करके मुझे बतलायें, कि आप इतना महत प्रयास किसलिए कर रहे हैं, आप क्या करना चाह रहे हैं, यदि यह कर्मकाण्डी यज्ञ है, तो यह किसकी तुष्टि हेतु किया जा

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अध्याय तेईस - ब्राह्मण-पत्नियों को आशीर्वाद (10.23)

1 ग्वालबालों ने कहा: हे महाबाहु राम, हे दुष्टदलन कृष्ण, हम सब भूख से त्रस्त हैं। इसके लिए आपको कुछ करना चाहिए।

2 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: ग्वालबालों द्वारा इस प्रकार प्रार्थना किये जाने पर देवकीपुत्र भगवान ने अपने कुछ भक्तों को जो कि ब्राह्मणपत्नियाँ थीं, प्रसन्न करने की इच्छा से इस प्रकार उत्तर दिया।

3 [भगवान कृष्ण ने कहा]: तुम लोग यज्ञशाला में जाओ जहाँ वैदिक आदेशों में निपुण ब्राह्मणों का एक समूह स्वर्ग जाने की इच्छा से इस समय आंगिरस यज्ञ

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अध्याय बाईस - कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण (10.22)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हेमन्त ऋतु के पहले मास में गोकुल की अविवाहिता लड़कियों ने कात्यायनी देवी का पूजा-व्रत रखा। पूरे मास उन्होंने बिना मसाले की खिचड़ी खाई।

2-3 हे राजन, सूर्योदय होते ही यमुना के जल में स्नान करके वे गोपियाँ नदी के तट पर देवी दुर्गा का मिट्टी का अर्चाविग्रह बनातीं। तत्पश्चात वे चन्दन लेप जैसी सुगन्धित सामग्री, महँगी और साधारण वस्तुओं यथा दीपक, फल, सुपारी, कोपलों तथा सुगन्धित मालाओं और अगरु के द्वारा उनकी पूजा

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अध्याय इक्कीस - गोपियों द्वारा कृष्ण के वेणुगीत की सराहना (10.21)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस तरह वृन्दावन का जंगल स्वच्छ शारदीय जलाशयों से पूरित था और स्वच्छ जलाशयों में खिले कमल पुष्पों की सुगन्ध वाली वायु से शीतल था। अपनी गौवों तथा ग्वालसखाओं समेत अच्युत भगवान ने उस जंगल में प्रवेश किया।

2 वृन्दावन के सरोवर, नदियाँ तथा पर्वत पुष्पित वृक्षों पर मँडराते उन्मत्त भौरों तथा पक्षियों के समूहों से गुंजरित हो रहे थे। मधुपति (श्रीकृष्ण) ने ग्वालबालों तथा बलराम के संग उस जंगल में प्रवेश किया और ग

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अध्याय बीस - वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद ऋतु (10.20) 

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: तब ग्वालबालों ने वृन्दावन की गोपियों से दावाग्नि से बचाए जाने और प्रलम्बासुर का वध किये जाने के कृष्ण तथा बलराम के अद्भुत कार्यों का विस्तार से वर्णन किया।

2 यह वर्णन सुनकर बड़े-बूढ़े गोप-गोपियाँ आश्चर्यचकित हो गये और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कृष्ण तथा बलराम अवश्य ही महान देवता हैं, जो वृन्दावन में प्रकट हुए हैं।

3 इसके बाद वर्षा ऋतु का शुभारम्भ हुआ जो समस्त जीवों को जीवनदान देती है। आकाश गर्जना से गूँजने लग

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अध्याय उन्नीस दावानल पान (10.19)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब ग्वालबाल खेलने में पूरी तरह मग्न थे तो उनकी गौवें दूर चली गई। अधिक घास के लोभ में तथा कोई उनकी देखभाल करनेवाला न होने से वे घने जंगल में घुस गई।

2 विशाल जंगल के एक भाग से दूसरे भाग में जाते हुए बकरियाँ, गौवें तथा भैंसे अन्ततः मूँज से आच्छादित क्षेत्र में घुस गई। पास के जंगल की अग्नि की गर्मी से उन्हें प्यास लगी और वे कष्ट के कारण रँभाने लगी।

3 गौवों को सामने न देखकर कृष्ण, राम तथा उनके ग्वालमित्रों को सहसा अपनी असावधानी पर पछतावा

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अध्याय पन्द्रह - धेनुकासुर का वध (10.15)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: वृन्दावन में रहते हुए जब राम तथा कृष्ण ने पौगण्ड अवस्था (6-10 वर्ष) प्राप्त कर ली तो ग्वालों ने उन्हें गौवें चराने के कार्य की अनुमति प्रदान कर दी। इस तरह अपने मित्रों के साथ इन दोनों बालकों ने वृन्दावन को अपने चरणकमलों के चिन्हों से अत्यन्त पावन बना दिया।

2 इस तरह अपनी लीलाओं का आनन्द उठाने की इच्छा से वंशी बजाते हुए और अपने गुणगान कर रहे ग्वालबालों से घिरे हुए तथा बलदेव के साथ जाते हुए माधव ने गौवों को अपने आगे कर लिया और

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अध्याय चार राजा कंस के अत्याचार (10.4) 

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, घर के भीतरी तथा बाहरी दरवाजे पूर्ववत बन्द हो गए। तत्पश्चात घर के रहने वालों ने, विशेष रूप से द्वारपालों ने, नवजात शिशु का क्रन्दन सुना और अपने बिस्तरों से उठ खड़े हुए।

2 तत्पश्चात सारे द्वारपाल जल्दी से भोजवंश के शासक राजा कंस के पास गए और उसे देवकी से शिशु के जन्म लेने का समाचार बतलाया। अत्यन्त उत्सुकता से इस समाचार की प्रतीक्षा कर रहे कंस ने तुरन्त ही कार्यवाही की।

3 कंस तुरन्त ही बिस्तर से यह सोचते हुए उ

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अध्याय दो देवताओं द्वारा गर्भस्थ कृष्ण की स्तुति 

1-2 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: मगधराज जरासन्ध के संरक्षण में शक्तिशाली कंस द्वारा यदुवंशी राजाओं को सताया जाने लगा। इसमें उसे प्रलम्ब, बक, चाणुर, तृणावर्त, अघासुर, मुष्टिक, अरिष्ट, द्विविद, पूतना, केशी, धेनुक, बाणासुर, नरकासुर तथा पृथ्वी के अनेक दूसरे असुर राजाओं का सहयोग प्राप्त था।

3 असुर राजाओं द्वारा सताये जाने पर यादवों ने अपना राज्य छोड़ दिया और कुरुओं, पञ्चालों, केकयों, शाल्वों, विदर्भों, निषधों, विदेहों तथा कोशलों के राज्य में प्रविष्ट

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