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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

नलकूवर तथा मणिग्रीव द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय दस)

24 सर्वोच्च भक्त नारद के वचनों को सत्य बनाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण धीरे धीरे उस स्थान पर गये जहाँ दोनों अर्जुन वृक्ष खड़े थे।

25 “यद्यपि ये दोनों युवक अत्यंत धनी कुबेर के पुत्र हैं और उनसे मेरा कोई संबंध नहीं है परंतु देवर्षि नारद मेरा अत्यंत प्रिय तथा वत्सल भक्त है और क्योंकि उसने चाहा था कि मैं इनके समक्ष आऊँ अतएव इनकी मुक्ति के लिए मुझे ऐसा करना चाहिए।"

26 इस तरह कहकर कृष्ण तुरंत ही दो अर्जुन वृक्षों के बीच प्रविष्ट हुए जिससे वह बड़ी ओखली जिससे वे बाँधे गये थे तिरछी हो गई और उनके बीच फँस गई।

27 अपने पेट से बँधी ओखली को बलपूर्वक अपने पीछे घसीटते हुए बालक कृष्ण ने दोनों वृक्षों को उखाड़ दिया। परम पुरुष की महान शक्ति से दोनों वृक्ष अपने तनों, पत्तों तथा टहनियों समेत बुरी तरह से हिले और तड़तड़ाते हुए भूमि पर गिर पड़े।

28 तत्पश्र्चात जिस स्थान पर दोनों अर्जुन वृक्ष गिरे थे वहीं पर दोनों वृक्षों से दो महान सिद्ध पुरुष, जो साक्षात अग्नि जैसे लग रहे थे, बाहर निकल आये। उनके सौन्दर्य का तेज चारों ओर प्रकाशित हो रहा था। उन्होंने नतमस्तक होकर कृष्ण को नमस्कार किया और हाथ जोड़कर निम्नलिखित शब्द कहे।

29 हे कृष्ण, हे कृष्ण, आपकी योगशक्ति अचिंत्य है। आप सर्वोच्च आदि-पुरुष हैं, आप समस्त कारणों के कारण हैं, आप पास रहकर भी दूर हैं और इस भौतिक सृष्टि से परे हैं। विद्वान ब्राह्मण जानते हैं (सर्व खल्विदं ब्रह्म---इस वैदिक कथन के आधार पर) कि आप सर्वेसर्वा हैं और यह विराट विश्र्व अपने स्थूल तथा सूक्ष्म रूपों में आपका ही स्वरूप है।

30-31 आप हर वस्तु के नियंता भगवान हैं। आप ही हर जीव का शरीर, प्राण, अहंकार इंद्रियाँ तथा काल हैं। आप परम पुरुष, अक्षय नियंता विष्णु हैं। आप तात्कालिक कारण और तीन गुणों---सतो, रजो तथा तमो गुणों--वाली भौतिक प्रकृति हैं। आप इस भौतिक जगत के आदि कारण हैं। आप परमात्मा हैं। अतएव आप हर एक जीव के हृदय की बात को जानने वाले हैं।

32 हे प्रभु, आप सृष्टि के पूर्व से विद्यमान हैं। अतः इस जगत में भौतिक गुणों वाले शरीर में बंदी रहने वाला ऐसा कौन है, जो आपको समझ सके?

33 अपनी ही शक्ति से आच्छादित महिमा वाले हे प्रभु, आप भगवान हैं। आप सृष्टि के उद्गम, संकर्षण, हैं और चतुर्व्युह के उद्गम, वासुदेव, हैं। आप सर्वस्व होने से परब्रह्म हैं अतएव हम आपको नमस्कार करते हैं।

34-35 आप मत्स्य, कूर्म, वराह जैसे शरीरों में प्रकट होकर ऐसे प्राणियों द्वारा सम्पन्न न हो सकने वाले कार्यकलाप-असामान्य, अतुलनीय, असीम शक्ति वाले दिव्य कार्य-प्रदर्शित करते है। अतएव आपके ये शरीर भौतिक तत्त्वों से नहीं बने होते अपितु आपके अवतार होते हैं। आप वही भगवान हैं, जो अब अपनी पूर्ण शक्ति के साथ इस जगत के सारे जीवों के लाभ के लिए प्रकट हुए हैं।

36 हे परम कल्याण, हम आपको सादर नमस्कार करते हैं क्योंकि आप परम शुभ हैं। हे यदुवंश के प्रसिद्ध वंशज तथा नियंता, हे वसुदेव-पुत्र, हे परम शांत, हम आपके चरणकमलों में सादर नमस्कार करते हैं।

37 हे परम रूप, हम सदैव आपके दासों के, विशेष रूप से नारदमुनि के दास हैं। अब आप हमें अपने घर जाने की अनुमति दें। यह तो नारदमुनि की कृपा है कि हम आपका साक्षात दर्शन कर सके।

38 अब से हमारे सभी शब्द आपकी लीलाओं का वर्णन करें, हमारे कान आपकी महिमा का श्रवण करें, हमारे हाथ, पाँव तथा अन्य इंद्रियाँ आपको प्रसन्न करने के कार्यों में लगें तथा हमारे मन सदैव आपके चरणकमलों का चिंतन करें। हमारे सिर इस संसार की हर वस्तु को नमस्कार करें क्योंकि सारी वस्तुएँ आपके ही विभिन्न रूप हैं और हमारी आँखें आपसे अभिन्न वैष्णवों के रूपों का दर्शन करें।

39 शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: इस तरह दोनों देवताओं ने भगवान की स्तुति की। यद्यपि भगवान कृष्ण सबों के स्वामी हैं और गोकुलेश्र्वर थे किन्तु वे गोपियों की रस्सियों द्वारा लकड़ी की ओखली से बाँध दिये गये थे इसलिए उन्होंने हँसते हुए कुबेर के पुत्रों से ये शब्द कहे।

40 भगवान ने कहा: परम संत नारदमुनि अत्यंत कृपालु हैं। उन्होंने अपने शाप से तुम दोनों पर बहुत बड़ा अनुग्रह किया है क्योंकि तुम दोनों भौतिक ऐश्वर्य के पीछे उन्मत्त होकर अंधे बन चुके थे। यद्यपि तुम दोनों स्वर्गलोक से गिरकर वृक्ष बने थे किन्तु उन्होंने तुम दोनों पर सर्वाधिक कृपा की। मैं प्रारम्भ से ही इन घटनाओं को जानता था।

(समर्पित एवं सेवारत – जगदीश चन्द्र चौहान)

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