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अध्याय तेईस – ययाति के पुत्रों की वंशावली (9.23)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: ययाति के चौथे पुत्र अनु के तीन पुत्र हुए जिनके नाम थे – सभानर, चक्षु तथा परेष्णु। हे राजन, सभानर के कालनर नाम का एक पुत्र हुआ और कालनर से सृञ्जय नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।

2 सृञ्जय का पुत्र जनमेजय हुआ, जनमेजय का पुत्र महाशाल, महाशाल का पुत्र महामना और महामना के दो पुत्र उशीनर तथा तितिक्षु हुए।

3-4 उशीनर के चार पुत्र थे – शिवि, वर, कृमि तथा दक्ष। शिवि के भी चार पुत्र हुए – वृषादर्भ, सुधीर, मद्र तथा आत्मतत्त्वित केकय। तितिक्षु का पुत्र रुषद्रथ था, रुषद्रथ का पुत्र होम था, होम का सुतपा और सुतपा का पुत्र बलि था।

5 चक्रवती राजा बलि की पत्नी के गर्भ से दीर्घतमा मुनि ने छह पुत्र उत्पन्न किए जिनके नाम थे अंग, वाङ, कलिंग, सुह्य, पुण्ड्र तथा ओड्र।

6 बाद में अंगादि ये छहों पुत्र भारत के पूर्व दिशा में छह राज्यों के राजा बने। ये राज्य अपने-अपने राजा के नाम के अनुसार विख्यात हुए। अंग से खलपान नामक पुत्र हुआ जिससे दिविरथ उत्पन्न हुआ।

7-10 दिविरथ का पुत्र धर्मरथ हुआ और उसका पुत्र चित्ररथ था जो रोमपाद के नाम से विख्यात था। किन्तु रोमपाद के कोई सन्तान न थी अतएव उसके मित्र महाराज दशरथ ने उसे अपनी पुत्री शान्ता दे दी। रोमपाद ने उसे पुत्री रूप में स्वीकार किया। तत्पश्चात उस पुत्री ने ऋष्यशृंग से विवाह कर लिया। जब स्वर्गलोक के देवताओं ने वर्षा नहीं की तो ऋष्यशृंग को गणिकाओं के द्वारा आकर्षित करके जंगल से लाया गया और उसे एक यज्ञ सम्पन्न करने के लिए पुरोहित नियुक्त किया गया। ये गणिकाएँ नाचकर तथा संगीत के साथ नाटक करके और उनका आलिंगन तथा पूजन करके उन्हें ले आई थी। ऋष्यशृंग के आने के बाद वर्षा हुई। तत्पश्चात ऋष्यशृंग ने महाराज दशरथ के लिए पुत्र-यज्ञ किया क्योंकि उनका कोई पुत्र न था। इससे महाराज दशरथ को पुत्र-प्राप्ति हुई। ऋष्यशृंग की कृपा से रोमपाद के एक पुत्र चतुरंग हुआ और चतुरंग से पृथुलाक्ष का जन्म हुआ।

11 पृथुलाक्ष के पुत्र थे बृहद्रथ, बृहत्कर्मा तथा बृहदभानु। ज्येष्ठ पुत्र बृहद्रथ से बृहन्मना नाम का पुत्र हुआ और बृहन्मना से जयद्रथ हुआ।

12 जयद्रथ की पत्नी सम्भूति के गर्भ से विजय उत्पन्न हुआ, विजय से धृति, धृति से धृतिव्रत, धृतिव्रत से सत्कर्मा तथा सत्कर्मा से अधिरथ हुआ।

13 गंगा नदी के तट पर खेलते समय अधिरथ को एक टोकरी में बन्द एक शिशु प्राप्त हुआ। इस शिशु को कुन्ती ने छोड़ दिया था क्योंकि यह उसके विवाह होने के पूर्व उत्पन्न हुआ था। चूँकि अधिरथ के कोई पुत्र न था अतएव उसने इस शिशु को अपने पुत्र की तरह पाला पोसा। (बाद में यही पुत्र कर्ण कहलाया)

14 हे राजन कर्ण का एकमात्र पुत्र वृषसेन था। ययाति के तृतीय पुत्र द्रहयु का पुत्र बभ्रु था वभ्रु का पुत्र सेतु था।

15 सेतु का पुत्र आरब्ध था, आरब्ध का पुत्र गान्धार हुआ और गान्धार का पुत्र धर्म था। धर्म का पुत्र धृत, धृत का दुर्मद और दुर्मद का पुत्र प्रचेता था जिसके एक सौ पुत्र हुए।

16 प्रचेताओं (प्रचेता के पुत्रों) ने भारत की उत्तरी दिशा में कब्जा कर लिया जो वैदिक सभ्यता से विहीन थी और वे वहाँ के राजा बन गये। ययाति का दूसरा पुत्र तुर्वसु था। तुर्वसु का पुत्र वह्री था, वह्री का पुत्र भर्ग था और भर्ग का पुत्र भानुमान था।

17 भानुमान का पुत्र त्रिभानु था और उसका पुत्र उदारचेता करन्धम था। करन्धम का पुत्र मरुत था जिसके कोई पुत्र न था अतएव उसने पुरुवंशी पुत्र (महाराज दुष्मन्त) को पुत्र रूप में गोद ले लिया।

18-19 महाराज दुष्मन्त सिंहासन में बैठने की इच्छा से अपने मूलवंश (पुरुवंश) में लौट गये यद्यपि वे मरुत को अपना पिता स्वीकार कर चुके थे। हे महाराज परीक्षित, अब मैं महाराज ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु के वंश का वर्णन करता हूँ। यह वर्णन अत्यन्त पवित्र है और मानवसमाज के सारे पापों के फलों को दूर करने वाला है। इस वर्णन को सुनने मात्र से मनुष्य सारे पापों के फलों से मुक्त हो जाता है।

20-21 पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कृष्ण, जो सारे जीवों के हृदयों में परमात्मा स्वरूप हैं, मनुष्य के अपने आदि रूप में यदु कुल में अवतरित हुए। यदु के चार पुत्र थे – सहस्रजित, क्रोष्टा, नल तथा रिपु। इन चारों में से सबसे बड़े सहस्रजित के एक पुत्र था जिसका नाम शतजित था। उसके तीन पुत्र हुए – महाहय, रेणुहय तथा हैहय।

22 हैहय का पुत्र धर्म था और धर्म का पुत्र नेत्र था जो कुन्ति का पिता था कुन्ति से सोहञ्जि, सोहञ्जि से महिष्मान तथा महिष्मान से भद्रसेनक उत्पन्न हुए।

23 भद्रसेन के पुत्र दुर्मद तथा धनक कहलाये। धनक कृतवीर्य के अतिरिक्त कृताग्नि, कृतवर्मा तथा कृतीजा का भी पिता था।

24 कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था। वह (कार्तवीर्यार्जुन) सातों द्वीप वाले सारे संसार का सम्राट बन गया। उसे भगवान के अवतार दत्तात्रेय से योगशक्ति प्राप्त हुई थी। इस तरह उसने अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं।

25 इस संसार का कोई भी राजा यज्ञ, दान, तपस्या, योगशक्ति, शिक्षा, बल या दया में कार्तवीर्यार्जुन की बराबरी नहीं कर सकता था।

26 कार्तवीर्यार्जुन ने लगातार पचासी हजार वर्षों तक पूर्ण शारीरिक बल तथा त्रुटिरहित स्मरण शक्ति से भौतिक ऐश्वर्यों का भोग किया। दूसरे शब्दों में, उसने अपनी छहों इन्द्रियों से अक्षय भौतिक ऐश्वर्यों का भोग किया।

27 कार्तवीर्यार्जुन के एक हजार पुत्रों में से परशुराम से युद्ध करने के बाद केवल पाँच पुत्र जीवित बचे। उनके नाम थे जयध्वज, शुरसेन, वृषभ, मधु तथा ऊर्जित।

28 जयध्वज के तालजंघ नाम का एक पुत्र था जिसके एक सौ पुत्र उत्पन्न हुए। उस तालजंघ नामक वंश के सारे क्षत्रियों का विनाश महाराज सगर द्वारा किया गया जिन्हें और्व ऋषि से महान शक्ति प्राप्त हुई थी।

29 तालजंघ के पुत्रों में से वीतिहोत्र सबसे बड़ा था। वीतिहोत्र का पुत्र मधु था जिसका पुत्र वृष्णि विख्यात था। मधु के एक सौ पुत्र हुए जिनमें वृष्णि सबसे बड़ा था। यादव, माधव तथा वृष्णि नामक वंशों का उद्गम यदु, मधु, तथा वृष्णि से हुआ।

30-31 हे महाराज परीक्षित, चूँकि यदु, मधु तथा वृष्णि में से हर एक ने वंश चलाये अतएव उनके वंश यादव, माधव तथा वृष्णि कहलाते हैं। यदु के पुत्र कोष्टा के वृजीनवान नाम का एक पुत्र हुआ। वृजीनवान का पुत्र स्वाहित था, स्वाहित का विषदगु, विषदगु का चित्ररथ और चित्ररथ का पुत्र शशबिन्दु हुआ जो महान योगी था और चौदहों ऐश्वर्यों से युक्त था तथा वह चौदह महान रत्नों का स्वामी था। इस तरह वह संसार का सम्राट बना।

32 सुप्रसिद्ध शशबिन्दु की दस हजार पत्नियाँ थीं और उनमें से हर एक से एक लाख पुत्र उत्पन्न हुए। इसलिए उसके पुत्रों की संख्या एक अरब थी।

33 इन अनेक पुत्रों में से छह अग्रणी थे यथा पृथुश्रवा तथा पृथुकीर्ति। पृथुश्रवा का पुत्र धर्म कहलाया और उसका पुत्र उशना कहलाया। उशना ने एक सौ अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न किये।

34 उशना का पुत्र रुचक था जिसके पाँच पुत्र थे – पुरुजित, रुक्म, रुक्मेषु, पृथु तथा ज्यामघ। कृपया मुझसे इनके विषय में सुनें।

35-36 ज्यामघ के कोई पुत्र न था, चूँकि वह अपनी पत्नी शैब्या से डरता था अतएव उसने दूसरा विवाह नहीं किया। एक बार ज्यामघ किसी शत्रु राजा के खेमे से एक लड़की ले आया जो एक गणिका थी। किन्तु उसे देखकर शैब्या अत्यन्त क्रुद्ध हुई और उसने अपने पति से कहा "क्यों रे धूर्त! यह लड़की कौन है जो रथ में मेरे आसान पर बैठी है?” तब ज्यामघ ने उत्तर दिया "यह लड़की तुम्हारी बहू (पुत्रवधू) होगी।" इन विनोदपूर्ण शब्दों को सुनकर शैब्या ने हँसते हुए उत्तर दिया।

37 शैब्या ने कहा, “मैं बाँझ हूँ और मेरी कोई सौत भी नहीं है। भला यह लड़की मेरी बहू (पुत्रवधू) कैसे बन सकती है?” ज्यामघ ने उत्तर दिया, “मेरी रानी! मैं देखूँगा कि तुम्हारे पुत्र होगा और यह लड़की तुम्हारी बहू बनेगी।"

38 बहुत काल पूर्व ज्यामघ ने देवताओं तथा पितरों की पूजा करके उन्हें प्रसन्न कर लिया था। अब उन्हीं की दया से ज्यामघ के शब्द सही उतरे। यद्यपि शैब्या बाँझ थी लेकिन देवताओं की कृपा से वह गर्भिणी हुई और समय आने पर उसने विदर्भ नामक शिशु को जन्म दिया। चूँकि शिशु के जन्म के पूर्व ही उस लड़की को बहू रूप में स्वीकार किया जा चुका था अतएव जब विदर्भ सयाना हुआ तो विदर्भ ने उसके साथ विवाह कर लिया।

( समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान )

 

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Comments

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