10892841485?profile=RESIZE_584x

अध्याय एक – यदुवंश को शाप (11.1)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: भगवान श्रीकृष्ण ने बलराम से मिलकर तथा यदुवंशियों से घिरे रहकर अनेक असुरों का वध किया। तत्पश्चात, पृथ्वी का भार हटाने के लिए भगवान ने कुरुक्षेत्र के उस महान युद्ध की योजना की, जो कुरुओं तथा पाण्डवों के बीच हुआ।

2 चूँकि पाण्डुपुत्र अपने शत्रुओं के अनेकानेक अपराधों से यथा – कपटपूर्ण जुआ खेलने, वचनों द्वारा अपमान, द्रौपदी के केशकर्षण तथा अनेक क्रूर अत्याचारों से क्रुद्ध थे, इसलिए परमेश्वर ने उन पाण्डवों को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कारण-रूप में उपयोग किया। भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र युद्ध के बहाने पृथ्वी पर भार बन रहे सारे राजाओं को अपनी-अपनी सेनाओं समेत युद्धभूमि में दोनों पक्षों की ओर से एकत्र कराने की व्यवस्था की। भगवान ने उन्हें युद्ध के माध्यम से सदैव के लिए हटाकर, बहुत हद तक पृथ्वी के भार को दूर किया।

3 भगवान ने अपने बाहुओं द्वारा संरक्षित यदुवंश का प्रयोग उन राजाओं का सफाया करने के लिए किया, जो अपनी सेनाओं सहित इस पृथ्वी के लिए भार बने हुए थे। तत्पश्चात भगवान ने विचार किया, “भले ही कोई यह कहे कि अब पृथ्वी का भार समाप्त हो गया है, किन्तु यह अभी समाप्त नहीं हुआ है, क्योंकि अब भी यादववंश बचा हुआ है, जिसकी शक्ति पृथ्वी के लिए असहनीय है।"

4 भगवान कृष्ण ने सोचा: इस यदुवंश के सदस्य सदैव पूरी तरह से मेरे शरणागत रहे हैं और इनका ऐश्वर्य असीम है, अतः कोई भी बाहरी ताकत इस वंश को पराजित नहीं कर पाई। किन्तु यदि मैं इस वंश के भीतर कलह को प्रोत्साहित करूँ, तो वह कलह बाँस के कुंज में घर्षण से उत्पन्न अग्नि की तरह कार्य करेगा। तब मैं असली मन्तव्य प्राप्त करके अपने नित्य धाम लौट सकूँ गा।"

5 हे राजा परीक्षित, जब परम शक्तिशाली भगवान ने, जिनकी इच्छा सदैव पूरी होकर रहती है, इस प्रकार अपने मन में निश्चय कर लिया, तो उन्होंने ब्राह्मणों की सभा द्वारा दिये गये शाप के बहाने अपने परिवार को समेट लिया।

6-7 भगवान कृष्ण समस्त सौन्दर्य के आगार हैं। सारी सुन्दर वस्तुएँ उन्हीं से उत्पन्न हैं और उनका स्वरूप इतना आकर्षक है कि वह अन्य सारी वस्तुओं से आँखों को हटा देता है, जो उनकी तुलना में सौन्दर्यविहीन प्रतीत होती हैं। जब भगवान कृष्ण इस पृथ्वी पर थे, तो वे सबों के नेत्रों को आकर्षित कर लेते थे। जब कृष्ण बोलते थे, तो उनके शब्द उन सबके मन को आकृष्ट कर लेते थे, जो उनका स्मरण करते थे। लोग कृष्ण की चरणचापों को देखकर आकृष्ट हो जाते थे और अपने शारीरिक कार्यों को वे उनके अनुयायी बनकर उन्हें ही अर्पित करने की इच्छा करने लगते थे। इस तरह कृष्ण ने आसानी से अपनी कीर्ति का विस्तार कर लिया था, जिसका गायन अत्यन्त वदान्य एवं अनिवार्य वैदिक श्लोकों के रूप में विश्वभर में किया जाता है। भगवान कृष्ण मानते थे कि इस कीर्ति का श्रवण तथा कीर्तन करने से ही भविष्य में जन्म लेनेवाले बद्धजीव अज्ञान के अंधकार को पार कर सकेंगे। इस व्यवस्था से तुष्ट होकर वे अपने इच्छित गन्तव्य के लिए विदा हो गये।

8 राजा परीक्षित ने पूछा: ब्राह्मणों ने उन वृष्णियों को कैसे शाप दिया, जो ब्राह्मणों के प्रति सदैव आदरभाव रखते थे, दानी थे, वृद्ध पुरुषों की सेवा करते थे और जिनके मन सदैव कृष्ण के विचारों में पूरी तरह लीन रहते थे?

9 राजा परीक्षित पूछते रहे: इस शाप का क्या उद्देश्य था? हे द्विजश्रेष्ठ, यह किस तरह का था? और यदुओं में, जो एक ही जीवनलक्ष्य भागी थे, ऐसा मतभेद क्यों उत्पन्न हुआ? कृपया, मुझे ये सारी बातें बतायें।

10 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: समस्त सुन्दर वस्तुओं के सम्मिश्रणरूप अपने शरीर को धारण करनेवाले भगवान ने पृथ्वी पर रहते हुए अत्यन्त शुभ कार्यों को कर्तव्यपरायणता के साथ सम्पन्न किया, यद्यपि वे बिना किसी प्रयास के अपनी सारी इच्छाएँ पहले ही पूरी कर चुके थे। अपने धाम में रहते हुए तथा जीवन का आनन्द उठाते हुए अब भगवान ने, जिनका महिमा-गायन स्वयं उदार है, अपने वंश का संहार करना चाहा, क्योंकि अब भी उन्हें कुछ थोड़ा-सा कर्म करना शेष था।

11-12 एक बार विश्वामित्र, असित, कन्व, दुर्वासा, भृगु, अंगिरा, कश्यप, वामदेव, अत्री तथा वसिष्ठ मुनियों ने नारद तथा अन्यों के साथ मिलकर प्रचुर पुण्य प्रदान करनेवाला, परम सुख लाने वाला तथा मात्र उच्चारण करने से, जगत के कलियुग के समस्त पापों को दूर करने वाला एक सकाम अनुष्ठान किया। इन मुनियों ने इस अनुष्ठान को कृष्ण के पिता एवं यदुओं के अग्रणी वसुदेव के घर में सम्पन्न किया। जब उस समय वसुदेव के घर में कालरूप में निवास कर रहे कृष्ण, उत्सव की समाप्ति होने पर मुनियों को आदरपूर्वक विदा कर चुके, तो वे मुनि पिण्डारक नामक पवित्र तीर्थस्थान चले गये।

13-15 उस तीर्थस्थान में यदुवंश के तरुण बालक जाम्बवती के पुत्र, साम्ब को स्त्री के वेश में ले आये थे। उन बालकों ने खिलवाड़ करते हुए वहाँ पर एकत्र महामुनियों के पास पहुँचकर उनके चरण पकड़ लिए और बनावटी विनयशीलता से उद्दण्डतापूर्वक उनसे पूछा, “हे विद्वान ब्राह्मणों यह श्याम नेत्रों वाली गर्भिणी स्त्री आप लोगों से कुछ पूछना चाहती है। वह अपने विषय में पूछने में अत्यधिक लजा रही है। वह शीघ्र ही बच्चे को जन्म देने वाली है और पुत्र प्राप्त करने के लिए अत्यन्त इच्छुक है। चूँकि आप सभी अच्युत दृष्टि वाले महामुनि हैं, अतः कृपा करके हमें बतायें कि इसकी सन्तान बालिका होगी या बालक।"

16 हे राजन, धोखे से इस तरह उपहास का पात्र बनाये गये मुनि क्रुद्ध हो गये और उन्होंने बालकों से कहा, “मूर्खों! वह तुम्हारे लिए लोहे का एक मूसल जनेगी, जो तुम्हारे समस्त कुल का विनाश करेगा।"

17 मुनियों का शाप सुनकर भयभीत बालकों ने झटपट साम्ब के पेट के कपड़े हटवाये और उन्होंने देखा कि उसके भीतर एक लोहे का मूसल था।

18 यदुवंश के तरुण लोगों ने कहा: ओह! यह हमने क्या कर डाला? हम कितने अभागे हैं! हमारे परिवार वाले हमसे क्या कहेंगे? ऐसा कहते हुए तथा अतीव विक्षुब्ध होकर, वे अपने साथ उस मूसल को लेकर अपने घरों को लौट गये।

19 वे यदु-बालक, जिनके मुख की कान्ति पूरी तरह फीकी पड़ चुकी थी, उस मूसल को राजसभा में ले आये और समस्त यादवों की उपस्थिति में उन्होंने राजा उग्रसेन से, जो कुछ घटना घटी थी, कह सुनाई।

20 हे राजा परीक्षित, जब द्वारका-वासियों ने ब्राह्मणों के अमोघ शाप को सुना और मूसल को देखा, तो वे भय से विस्मित तथा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये।

21 मूसल को चूरे-चूरे में तुड़वा कर यदुओं के राजा आहुक (उग्रसेन) ने स्वयं उन खण्डों को तथा शेष बचे लोहे के टुकड़े को समुद्र के जल में फेंक दिया।

22 किसी मछली ने वह लोहे का टुकड़ा निगल लिया और लोहे के शेष खण्ड लहरों द्वारा किनारे पर लग गये, जहाँ पर वे ऊँचे तीक्ष्ण नरकटों के रूप में उग आये।

23 यह मछली अन्य मछलियों के साथ समुद्र में मछुवारे के जाल में पकड़ ली गई। इस मछली के पेट में स्थित लोहे के टुकड़े को जरा नामक शिकारी ले गया, जिसने उसे अपने तीर की नोक में लगा लिया।

24 इन सारी घटनाओं की महत्ता को पूर्णतया जानते हुए ब्राह्मणों के शाप को पलट सकने में समर्थ होते हुए भी भगवान ने ऐसा करना नहीं चाहा। प्रत्युत, काल के रूप में उन्होंने खुशी-खुशी इन घटनाओं की स्वीकृति दे दी।

(समर्पित एवं सेवारत -- जगदीश चन्द्र चौहान)

E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT

Comments

This reply was deleted.