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अध्याय सतहत्तर – कृष्ण द्वारा शाल्व का वध (10.77)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जल से अपने को तरोताजा करने के बाद, अपना कवच पहनकर तथा अपना धनुष लेकर भगवान प्रद्युम्न ने अपने सारथी से कहा, “मुझे वहीं वापस ले चलो, जहाँ वीर द्युमान खड़ा है।"

2 प्रद्युम्न की अनुपस्थिति में द्युमान उनकी सेना को तहस-नहस किये जा रहा था, किन्तु अब प्रद्युम्न ने द्युमान पर बदले में आक्रमण कर दिया और हँसते हुए आठ नाराच बाणों से उसे बेध दिया।

3 इन बाणों में से चार से उसने द्युमान के चार घोड़ों को, एक बाण से उसके सारथी को तथा दो अन्य बाणों से उसके धनुष तथा रथ के झण्डे को और अन्तिम बाण से द्युमान के सिर पर प्रहार किया।

4 गद, सात्यकि, साम्ब तथा अन्य वीर शाल्व की सेना का संहार करने लगे और इस तरह विमान के भीतर के सारे सिपाही गर्दनें कट जाने से समुद्र में गिरने लगे।

5 इस तरह यदुगण तथा शाल्व के अनुयायी एक-दूसरे पर आक्रमण करते रहे और यह घनघोर युद्ध सत्ताईस दिनों तथा रातों तक चलता रहा।

6-7 धर्मपुत्र युधिष्ठिर द्वारा आमंत्रित किये जाने पर भगवान कृष्ण इन्द्रप्रस्थ गये हुए थे। अब जब राजसूय यज्ञ पूरा हो चुका था और शिशुपाल मारा जा चुका था, तो भगवान को अपशकुन दिखने लगे। अतः उन्होंने कुरुवंशी बड़े-बूढ़ों तथा महान ऋषियों से एवं अपनी बुआ – पृथा तथा उनके पुत्रों से भी विदा ली और द्वारका लौट आये।

8 भगवान ने अपने आप (मन ही मन) कहा: चूँकि मैं यहाँ अपने पूज्य ज्येष्ठ भ्राता सहित आया हूँ, शिशुपाल के पक्षधर राजा निश्चित ही मेरी राजधानी पर आक्रमण कर रहे होंगे।

9 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: द्वारका पहुँचने पर, उन्होंने देखा कि लोग किस तरह विनाश से भयभीत हैं और शाल्व तथा उसके सौभ विमान को भी देखा, तो केशव ने नगरी की सुरक्षा के लिए आयोजना की और फिर दारुक से निम्नवत बोले।

10 भगवान कृष्ण ने कहा: हे सारथी, शीघ्र ही मेरा रथ शाल्व के निकट ले चलो। यह सौभपति शक्तिशाली जादूगर है, तुम उससे विमोहित नहीं होना।

11 इस तरह आदेश दिये जाने पर दारुक ने भगवान के रथ की रास सँभाली और उसे आगे हाँका। ज्योंही रथ युद्धभूमि में प्रविष्ट हुआ, तो वहाँ पर उपस्थित शत्रु तथा मित्र हर एक की दृष्टि गरुड़ के प्रतीक की ओर पड़ी।

12 जब नष्टप्राय सेना के स्वामी शाल्व ने कृष्ण को पास आते देखा, तो उसने भगवान के सारथी पर अपना भाला फेंका। यह भाला युद्धभूमि में से होकर उड़ते समय भयावह गर्जना कर रहा था।

13 शाल्व द्वारा फेंके गये भाले ने सारे आकाश को अत्यन्त तेजवान उल्का तारे की तरह प्रकाशित कर दिया, किन्तु भगवान शौरी ने अपने बाणों से इस महान अस्त्र को सैकड़ों खण्डों में छिन्न-भिन्न कर डाला।

14 तब भगवान कृष्ण ने शाल्व को सोलह बाणों से बेध दिया तथा आकाश में इधर-उधर घूमते हुए सौभ विमान पर बाणों की वर्षा से प्रहार किया। बाणों के वर्षा करते हुए भगवान उस सूर्य की तरह लग रहे थे, जो अपनी किरणों से आकाश को आप्लावित करता है।

15 तब शाल्व ने भगवान कृष्ण की बाईं बाँह पर प्रहार किया, जिसमें वे अपना शार्ङ्ग धनुष पकड़े थे। विचित्र बात यह हुई कि यह धनुष उनके हाथ से गिर गया।

16 जो यह घटना देख रहे थे, वे सब हाहाकार करने लगे। तब सौभ के स्वामी ने जोर-जोर से गरजकर जनार्दन से इस प्रकार कहा।

17-18 शाल्व ने कहा: चूँकि हमारी उपस्थिति में तुमने हमारे मित्र और अपने ही भाई शिशुपाल की मंगेतर का अपहरण किया है और उसके बाद जब वह सतर्क नहीं था, तो पवित्र सभा में तुमने उसकी हत्या कर दी है, इसलिए आज मैं अपने तेज बाणों से तुम्हें ऐसे लोक में भेज दूँगा, जहाँ से लौटना नहीं होता। यद्यपि तुम अपने को अपराजेय मानते हो, किन्तु यदि तुम मेरे समक्ष खड़े होने का साहस करो, तो मैं तुम्हें अभी मार डालूँगा।

19 भगवान ने कहा: रे मूर्ख! तुम व्यर्थ ही डींग मार रहे हो, क्योंकि तुम अपने निकट खड़ी मृत्यु को नहीं देख पा रहे हो। असली वीर कभी अधिक बातें नहीं करते, अपितु कार्य करके अपना पौरुष प्रदर्शित करते हैं।

20 ऐसा कहकर क्रुद्ध हुए भगवान ने भयावनी शक्ति तथा अत्यन्त वेग से अपनी गदा घुमाई और उसे शाल्व के कंधे की हड्डी पर दे मारा, जिससे वह छटपटा उठा और रक्त वमन करने लगा।

21 लेकिन भगवान अच्युत द्वारा अपनी गदा वापस लेते ही शाल्व दृष्टि से ओझल हो गया और उसके एक पल बाद एक व्यक्ति भगवान के पास आया। उनके समक्ष नतमस्तक होकर उसने कहा, “मुझे देवकी ने भेजा है" और रोते हुए उसने निम्नलिखित शब्द कहे।

22 उस व्यक्ति ने कहा: हे कृष्ण, हे कृष्ण, हे महाबाहु, हे अपने माता-पिता के प्रिय, शाल्व तुम्हारे पिता को बाँधकर उसी तरह ले गया है, जिस तरह कसाई किसी पशु का वध करने के लिए ले जाता है।

23 जब उन्होंने यह क्षुब्धकारी समाचार सुना, तो सामान्य मनुष्य की भूमिका निर्वाह कर रहे भगवान कृष्ण ने खेद तथा करुणा व्यक्त की और अपने माता-पिता के प्रति प्रेमवश उन्होंने सामान्य बद्धजीव जैसे शब्द कहे।

24 भगवान कृष्ण ने कहा: "बलराम सदैव सतर्क रहने वाले हैं और कोई देवता या असुर उन्हें पराजित नहीं कर सकता। तो वह क्षुद्र शाल्व किस तरह उन्हें पराजित करके मेरे पिता का अपहरण कर सकता है? निस्सन्देह, भाग्य सर्वशक्तिमान होता है।"

25 जब गोविन्द ये शब्द कह चुके, तो भगवान के समक्ष वसुदेव जैसे दिखने वाले किसी पुरुष को लेकर सौभपति पुनः प्रकट हुआ। तब शाल्व ने इस प्रकार कहा।

26 शाल्व ने कहा: यह रहा तुम्हें जन्म देने वाला तुम्हारा पिता, जिसके लिए तुम इस जगत में जीवित हो। अब मैं तुम्हारी आँखों के सामने इसका वध कर दूँगा, यदि तुम इसे बचा सको तो बचाओ।

27 इस प्रकार भगवान की हँसी उड़ाकर जादूगर शाल्व अपनी तलवार से वसुदेव का सिर काटता हुआ प्रतीत हुआ। वह उस सिर को अपने साथ लेकर आकाश में मँडरा रहे सौभ यान में घुस गया।

28 भगवान कृष्ण स्वभाव से ही ज्ञान से परिपूर्ण हैं और उनमें असीम अनुभूति की शक्ति है। तो भी परिजनों के प्रति महान स्नेहवश एक क्षण के लिए वे सामान्य प्राणी की मुद्रा में लीन हो गये। लेकिन उन्हें तुरन्त ही स्मरण हो आया कि यह तो मय दानव द्वारा सृजित आसुरी माया है, जिसे शाल्व काम में ला रहा है।

29 अब असली परिस्थिति के प्रति सतर्क भगवान अच्युत ने अपने समक्ष युद्धभूमि में न तो दूत को देखा न अपने पिता के शरीर को। ऐसा लग रहा था, मानो वे स्वप्न से जागे हों, तब शत्रु (शाल्व) को ऊपर सौभयान में देखा।

30 हे राजर्षि, यह विवरण कुछ ऋषियों द्वारा दिया हुआ है, किन्तु जो इस तरह अतार्किक ढंग से बोलते हैं, वे अपने ही पूर्ववर्ती कथनों को भुलाकर अपनी ही बात काटते हैं।

31 भला शोक, मोह, स्नेह या भय, जो कि अज्ञानजनित है, किस तरह से अनन्त भगवान को प्रभावित कर सकते हैं, जो ज्ञान, शक्ति एवं ऐश्वर्य से परिपूर्ण हैं?

32 भगवान के भक्तगण भगवान के चरणों पर की गई सेवा से प्रबलित आत्म-साक्षात्कार के कारण देहात्मबुद्धि को दूर कर देते हैं, जो अनन्त काल से आत्मा को मोहग्रस्त करती रही है। इस तरह वे उनकी निजी संगति में नित्य कीर्ति प्राप्त करते हैं। तब भला वे परम सत्य, जो कि समस्त विशुद्ध सन्तों के गन्तव्य हैं, मोह के वशीभूत कैसे हो सकते हैं?

33 जब शाल्व बड़े वेग से उन पर अस्त्रों की झड़ी लगाये हुए था, तो अमोघ पराक्रम वाले भगवान कृष्ण ने शाल्व पर अपने बाण छोड़े, जिससे वह घायल हो गया और उसका कवच, धनुष तथा मुकुट की मणि ध्वस्त हो गये। तब उन्होंने अपनी गदा से अपने शत्रु के सौभयान को छिन्न-भिन्न कर डाला।

34 भगवान कृष्ण की गदा से हजारों खण्डों में चूर-चूर हुआ सौभ विमान समुद्र में गिर गया। शाल्व ने इसे छोड़ दिया और पृथ्वी पर खड़ा हो गया। उसने अपनी गदा उठाई और भगवान अच्युत की ओर लपका।

35 जब शाल्व उनकी ओर झपटा, तो भगवान ने एक भाला छोड़ा और उसकी उस बाँह को काट लिया, जिससे गदा उठाई थी। अन्त में शाल्व का वध करने का निश्चय करके भगवान कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र धारण किया, जो ब्रह्माण्ड के प्रलय के समय दिखने वाले सूर्य जैसा लग रहा था। तेज से चमकते हुए भगवान उदयाचल जैसे प्रतीत हो रहे थे, जो उदय होते सूर्य को धारण करता है।

36 भगवान हरि ने सुदर्शन चक्र से शाल्व का सिर काट दिया। इस प्रकार शाल्व का वध ठीक वैसे ही हुआ, जैसे स्वर्ग के राजा इन्द्र द्वारा वृत्रासुर का वध हुआ था। यह देखकर शाल्व के सारे अनुयायी "हाय हाय" कहकर चीत्कार उठे।

37 अब पापी शाल्व के मृत हो जाने तथा उसके सौभयान के विनष्ट हो जाने पर, देवताओं द्वारा बजाई गई दुन्दुभियों से आकाश गूँज उठा। तब दन्तवक्र क्रोधित होकर, अपने मित्र की मृत्यु का बदला लेने हेतु, श्रीकृष्ण से लड़ने के लिए घटना स्थल पर प्रकट हुआ।

(समर्पित एवं सेवारत – जगदीश चन्द्र चौहान)

 

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Comments

  • 🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण - कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏
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