Hare Krsna devotees,

Please accept my humble obeisance. All glories to Srila Prabhupada & Srila Gopal Krishna Maharaj.

संसार को प्रेम करना बहुत आसान है लेकिन संसार को पाना बहुत कठिन, कष्टपूर्ण है | भगवान को पाना बहुत आसान है, लेकिन भगवत-प्रेम प्राप्त करना बहुत कठिन है | इसको समझने के लिए कुछ उदाहरण की चर्चा करते हैं:

जब बच्चा जन्म लेता है, तो कुछ दिनों में ही अपनी माँ को प्रेम करने लगता है, फिर अपने पिता को | धीरे धीरे वह अपने अन्य भाई, बहन को प्रेम करने लगता है | व्यस्क होने पर वह अपने मित्रों से प्यार करने लगता/लगती है | क्या उसे कोई यह प्रेम करना सिखाता है? नहीं | भगवान प्रत्येक जीव को प्रेम करने की शक्ति देकर ही इस जगत में भेजतें हैं | हम इस शक्ति को जीवन भर शरीर के सम्बन्धियों व संसारिक वस्तुओं में निवेशित करते रहते हैं | लेकिन जब हम संसार को पाने की कोशिश करते है अर्थात भोक्ता बन कर भोग करना चाहते हैं, तो हमें कितना कठोर श्रम तथा कष्ट उठाने पड़ते हैं ? आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि व्यक्ति को डॉक्टर, इंजिनियर, आईएएस आदि बनने के लिए शुरू से ही कितनी मेहनत, कोचिंग तथा अनुशासित जीवन बिताना होता है, फिर भी लाखों लोग प्रत्येक वर्ष असफलता का मुख देखते हैं | इसी प्रकार राजनीति में भी मंत्री, या प्रधानमंत्री बनने के लिए कितनी मेहनत, जोड़तोड़, चालबाजी आदि करनी पड़ती है फिर भी करोड़ों लोगों में से गिने चुने लोग ही मंत्री बन सकते हैं तथा कोई एक ही  प्रधानमंत्री बन सकता है और वो भी हमेशा के लिए नही | इसलिये कहा जाता है कि संसार को प्राप्त करना बहुत कष्टपूर्ण है |

अब हम भगवान को पाने की चर्चा करते हैं, जो कितना सरल है | श्री शुकदेव गोस्वामी कहतें हैं: प्रत्येक मनुष्य सर्वत्र तथा सर्वदा पुरुषोत्तम भगवान के नाम का श्रवण करे, गुणगान करे तथा स्मरण करे, बस इतने से ही वह भगवत धाम वापस जा कर भगवान के चरण-कमलों में शरण पा सकता है | इसी प्रकार भगवान चैतन्य महाप्रभु कहते हैं: कीर्तनीय: सदा हरि: अर्थात भगवान कृष्ण के नाम का सदा कीर्तन करो | कृष्ण के पवित्र नाम के कीर्तन मात्र से मनुष्य को भौतिक संसार से छुटकारा मिल सकता है तथा वह निश्चय ही कृष्ण के चरणकमलों में शरण प्राप्त करता है | और व्यक्ति के लिए नाम लेने के लिए कोई नियम भी नही है न तो समय का, न स्थान का और न ही परिस्थिति का | तो है ना कितना आसान |

लेकिन भगवत-प्रेम प्राप्त करना क्या आसान है? यह तो बस गोपियों को ही नसीब हुआ | कृष्ण का प्रेम प्राप्त करने के अनेक साधन तथा विधियाँ हैं | गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं: समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ | क्योंकि गोपियों में आत्मसुख अर्थात अपने सुख की भावना बिलकुल भी नही है, उनके जीवन की एकमात्र और केवल एकमात्र इच्छा है कृष्ण को सुख देना | इसलिए गोपियों का माधुर्य प्रेम अन्य सारी विधियों को पार कर जाती है | गोपियों ने कृष्ण का प्रेम पाने के लिए सारे धर्म- पत्नी धर्म, माँ का धर्म, पुत्री धर्म व सामाजिक धर्म इत्यादि सभी त्याग दिए | कृष्ण गोपियों से स्वीकार करते हैं कि वे उनके ऋण को अनेक जन्मों में भी नहीं चुका सकेगें, क्योंकि गोपियों ने उन्हें पाने के लिए समस्त बंधनों को तोड़ डाला |

श्रीमद भागवतम (10.47.60) के अनुसार: “जब भगवान कृष्ण गोपियों के साथ रासनृत्य कर रहे थे,तब उनकी भुजाएँ गोपियों के गले के इर्द गिर्द उनका आलिंगन कर रही थीं | ऐसा दिव्य संयोग न तो कभी लक्ष्मीजी जो प्राप्त हुआ, न ही वैकुण्ठ की अन्य प्रेयसियों को, न ही स्वर्गलोक की उन सुन्दरियों को जिनकी सुगन्धि कमल के फूल जैसी है तो भला उन सांसारिक स्त्रियों की बात ही क्या,जो भौतिक दृष्टि से अत्यंत सुन्दर हों?” |

कृष्ण कहते हैं: यदि कोई मुझे अपना पुत्र, मित्र या प्रेमी मान कर अपने आप को बड़ा एवं मुझको अपने समान या अपने से निम्न मान कर मेरी शुद्ध भक्ति करता है तो मैं उसके आधीन हो जाता हूँ (CC.आदि लीला 4.21-22) |

लक्ष्मीजी ने कृष्ण का प्रेम प्राप्त करने व रासलीला में सम्मलित होने के लिए कठिन तपस्या की, लेकिन शामिल नहीं हो पाई क्योकि गोपियों के भाव/शरीर में ही रास लीला में प्रवेश किया जा सकता था तथा इसी भाव में कृष्ण का प्रेम या भगवत-प्रेम प्राप्त किया जा सकता है |

क्या आप इससे सहमत हैं?

हरे कृष्णा

दण्डवत

आपका विनीत सेवक

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